बचपन की पोटरी: किसी की मुस्कुराहटों...!

बात उन दिनों की है जब मैं तीसरी क्लास में थी और भाई दूसरी | हमे स्कूल बस पकड़ने के लिए करीब 200 मीटर चलकर गली से बाहर आना पड़ता था | ज्यादातर मैं और भाई अकेले ही चले जाते थे, पर कोशिश रोज़ होती के पापा हमे छोड़ने आये | कारण था नया नया स्टेट बैंक का एटीएम | याद है पहले हमे उसके अंदर जाने के लिए भी कार्ड स्वाइप करना होता था | जब तक बस नहीं आती हम उसी एटीएम के कमरे में घुस जाते और ऐसे रहते जैसे उन 5-10 मिनट के लिए हम उसके मालिक हों | कभी उसके केमेरे में देखकर अजीब अजीब शकल बनाते और कभी पूरे भारत में एस बी आई एटीएम की लोकेशंस प्रिंट आउट निकाल कर बैग में भर लेते | जब पापा उसमे कार्ड डालते तो राजाओं की तरह उसे पैसे निकालने का आदेश देते | कभी जब खेलने का मन नहीं होता तो हम बस कांच से बहार की दुनिया देखते रहते | जैसे हमारे लिए सब नया हो, जैसे हमे इस दुनिया के हैं ही नहीं | सुबह के सात बजे हमे हमारे छोटे से 5 मिनट के महल में कोई परेशान करने नहीं आता | हाँ महल | वरना ए सी की ठंडी हवा और कहाँ खाने मिलेगी, वो भी मुफ्त !

एक दिन सुबह बहुत ज़ोरों की बारिश हो रही थी | पापा को पिछली शाम बारिश में भीगकर घर आने से ज़ुखाम हो रखा था, जिसका गुस्सा माँ हम सब पर निकाल रही थी | उनके लाख माना करने पर भी पापा हमे छोड़ने छाता लगाकर एटीएम तक आ ही गए | हमारे शूज पूरे गीले हो चुके थे, इसलिए हम उनमे से अजीब सी आवाज़ निकाल कर खेलने लगे | एकदम से मेरा ध्यान गया तो देखा पापा एटीएम के दरवाज़े पर छाता फसाकर (ताकी वो बंद ना हो जाए) कहीं जा रहे थे | कुछ और देख या समझ पाती उतने में बस ने हॉर्न दे दिया | बस की खिड़की से देखा तो पापा एटीएम के बाहर बैठने बाले टेलर चाचा को कुछ बोल रहे थे, उनसे लड़ रहे थे या उन्हें कुछ समझने की कोशिश कर रहे थे, पता नहीं | मै अपनी सीट पर बैठ गई पर कुछ समझ नहीं पा रही थी के क्या हो रहा था?

स्कूल से वापस आते ही मैंने दरवाज़े पर माँ से पूछा सुबह क्या हुआ था? और वो वाकई इस तरह बोली जैसे कुछ नहीं हुआ "क्या हुआ? कुछ भी तो नहीं |" मैंने उन्हें समझाया मै किस बारे में बात कर रही, तब पता चला के पापा टेलर चाचा को लेकर हॉस्पिटल गए थे, उन्हें बहुत तेज़ बुखार था | टेलर चाचा उसी एटीएम के बाहर एक छोटे से तिन शेड में रहते और काम करते थे | मै शायद एक आधा बार मिली हूँ उनसे, माँ के काम से | बच्चों को टॉफी की जगह लाइ दिया करते थे |

"तब तो आप पापा से बहुत गुस्सा हुई होगी ना माँ?"
"नहीं, इसमें गुस्सा होने वाली क्या बात?" माँ ने मुस्कुराते हुए आश्चर्य से पुछा |
"आप ही तो पापा को माना कर रही थी, तबयत खराब में हमे छोड़ने जाने से | पापा तो बारिश में भीगकर चाचा को हॉस्पिटल ले गए | अपने कुछ बोला नहीं उन्हें? वो हमे छोड़कर छाता लगाकर वापस आ जाते तो और बीमार नहीं पड़ते ना? टेलर चाचा को कोई और हॉस्पिटल ले जाता |" माँ समझ रही थी अब उनकी बेटी दुनिया समझने की कोशिश करने लगी है | उन्होंने मेरा हाँथ अपने हाँथ में लिया और कहा "सोचो अगर किसी दिन आपको मदद की ज़रुरत हो और सब ये सोचकर आगे बड़ जाए के कोई और आकर कर देगा तो?"

उस बात ने ना सिर्फ मुझे डरा दिया बल्कि थोड़ा निराश भी कर दिया | मैं सोचती थी के थोड़ा माँ की बर्तन ज़माने में मदद कर दी, थोड़ा पापा की कपडे ढूंढ़ने में, तो में दुनिया की सबसे अच्छी बच्ची हूँ | उस दिन समझा के सिर्फ अच्छि बेटी या अच्छी बच्ची बनाना काफी नहीं, एक अच्छा इंसान बनाना भी उतना ही जरूरी है | मेरा दिमाग शायद उस उम्र में ये बात इतने अच्छे से नहीं समझा था, पर हाँ उसमे एक ऐसा बीज जरूर पड़ गया था जो मुझे आज तक मदद के लिए मना नहीं करने देता | हम काई बार अपने आस पास लोगों को खुद से बुरी परिस्थितियों में देखते हैं, हमे दुःख भी होता है, हम सोचते हैं कुछ करेंगे पर करते नहीं | कुछ दिन में ना वो बात दिमाग में होती है न वो जरूरतमंद हमारे सामने |

पर उस दिन समझा के अपनों के लिए तो सब करते हैं | जब तक किसी दुसरे के लिए दिल में प्यार और हमदर्दी नहीं आप अच्छे इंसान नहीं बन पाएंगे | पापा जानते थे के टेलर चाचा की मदद करके उन्हें बदले में कुछ नहीं मिलने वाला, शायद मुफ्त की लाई के अलावा, फिर भी वो उन्हें हॉस्पिटल लेकर गए | बात बहुत छोटी है पर अगर सबके समझ आ जाये तो दुनिया बदल सकती है | हम सारा दिन सिर्फ अपनी ही उलझनों में उलझे रहते हैं, घर और बहार की जिम्मेदारियां पूरी करते हैं, कहीं न कहीं हम सब इस दुनिया को चला रहे हैं | पर जरुरत है इसे सही दिशा में चलाने  की, आगे बढ़ाने की |

उस शाम पापा के चेहरे पर भी ज़ुखाम की शिकन ना थी | शायद उनके दिल में भी ख़ुशी होगी के उन्होंने किसी के लिए कुछ अच्छा किया | हालांकि मुझे ये बात तब तक नहीं समझी जब तक मैंने खुद उस ख़ुशी को महसूस नहीं करा | पर वो कहानी किसी और दिन | माँ ने उस शाम समोसे बनाये थे, मतलब वो भी खुश थी | अब जब भी हम बस के लिए जाते टेलर चाचा हमे जबरदस्ती लाइ पकड़ा देते (हमे नहीं भी खानी हो तब भी ) |  पर इस सबका मतलब ये नहीं के, अब जब पापा को ऑफिस से भीगकर आने पर ज़ुखाम होता है, तो माँ गुस्सा नहीं करती | वो अब भी वैसे ही चिल्लाती है और हम सब पर गुस्सा निकलती है |

अब मेरे बचपन का एक फेवरेट सोंग आप सबके लिए | 


Comments

Popular posts from this blog

"F?@K KNOWS"...The book review...!!!

An Untold Story

The best meal of all time...!!!